Thursday, March 18, 2010

उधर दौलत की बेटी के घर जश्न, इधर दलित की बेटी पर सितम

उधर दौलत की बेटी के घर जश्न, इधर दलित की बेटी पर सितम

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प्रशासन का एक साथ दो चेहरा देखिए। नोटों की माला पहनकर इतरा रही उत्तर प्रदेश की दलित मुख्यमंत्री मायावती के कारिंदे दलितों की ही इज्जत को सरेआम नंगा कर रहे हैं। दलितों का उत्पीडन और शोषण सारी हदें पार कर रहा है। मानवाधिकार आहत और खून से लथपथ है। लालती को लाठियों डंडों से इतना पीटा गया कि वो बेहोश हो गयी। उसके पूर्व जब वो हाँथ जोड़कर अपने पति और बच्चों को छोड़े जाने की भीख मांग रही थी सैकड़ों की भीड़ के बीच उसके गुप्तांगों में लाठी डालने की कोशिश की गयी। रामनरेश, बुद्धिनारायण और श्यामलाल चलने फिरने के काबिल नहीं रहे। बुद्धिनारायण का पैर लाठियों से मार मार कर तोड़ डाला गया। कुछ अरसे पहले तक जो गाँव आबाद था अब वहां चारों और शमशान सी ख़ामोशी है।
नक्सलवाद की भट्टी में निरंतर तप रहे सोनभद्र के कोन थाना अंतर्गत मगरदह  गाँव के इन दलित आदिवासियों का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने अपने बाप दादा की जमीन से वन विभाग द्वारा बार-बार खदेड़े जाने के बावजूद अपनी जमीन की हकदारी नहीं छोड़ी थी, और लगातार वन अधिकार अधिनियम के तहत उक्त जमीन पर न्यायिक हक़ देने  की मांग कर रहे थे। समाचार भेजे जाने तक मगरदाहा में आदिवासियों पर वन विभाग के द्वारा किया गए हमले और बर्बर पिटाई के खिलाफ सोनभद्र के हजारों आदिवासियों ने जिलाधिकारी कार्यालय को घेर लिया था वहीँ वन विभाग ने घायलों के साथ साथ अन्य  सैकड़ों लोगों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा पंजीकृत दर्ज कर उनमे से कुछ को जेल भेज दिया था, जज ने ललिता समेत अन्य घायलों की चिकित्सीय जांच के आदेश दिए हैं, उधर लखनऊ  में कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव'गृह" को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है|
उत्तर प्रदेश में मायावती  सरकार के परदे के पीछे का सच बयां करती ये घटना सिर्फ एक घटना नहीं है बल्कि प्रदेश में दलितों के खिलाफ सरकार प्रायोजित मानवाधिकार हनन का जीता जागता नमूना है। मगरदहा के आदिवासियों को पिछले साल अगस्त  माह में पुलिस और वन विभाग ने संयुक्त  कार्यवाही कर लगभग एक हजार आदिवासियों को उनके  घरों से खदेड़ दिया था और उनके झोपड़ियों  में आग लगाकर उसे तहस नहस कर डाला था उस दौरान वनकर्मी आदिवासियों के घरों का सारा सामान भी लूट ले गए थे। उस दौरान  जिन्होंने विरोध किया उनके खिलाफ फर्जी मुक़दमे भी दर्ज कर दिए गए थे। ये सभी परिवार लगभग आठ माह तक इधर उधर भटक रहे थे। पिछले ३० नवम्बर को लगभग ४ हजार लोगों ने इसी मुद्दे पर कोन थाने का घेराव भी कर दिया था। इस बीच लगभग एक सप्ताह पूर्व ये आदिवासी जैसे तैसे छुपते छिपाते वापस अपने गाँव लौट आये और अपनी झोपड़ियाँ फिर से बनाने लगे।
मंगलवार की शाम ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी आर. के. चौरसिया ने आदिवासियों द्वारा फिर से झोपड़ियाँ बनाये जाने की खबर मिलते ही सैकड़ों की संख्या में वन सुरक्षा बल की टीम वहां भेज दी गयी। वनकर्मियों ने वहां पहुँचते ही निहत्थे आदिवासी दलितों की बर्बर पिटाई शुरू कर दी. पुरुषों को लाठियों से पीट पीट कर बेदम कर दिया गया वहीँ महिलाओं को बाल पकड़ कर घसीट कर जबरन निकला गया। मौके पर मौजूद गाँव के बंशी ने बिलखते हुए बताया की जब ये सब हो रहा था आदिवासियों के निरीह बच्चों की चीत्कार से पूरा जंगल गूँज रहा था पर वनकर्मियों को दया नहीं आई। सब कुछ तहस नहस करने के बाद वनकर्मी लालती और तीन पुरुषों को रात में ही उठा कर ले गए। बुरी तरह से घायल होने के बाद भी किसी का चिकित्सीय परिक्षण नहीं कराया गया।
इस पूरे मामले पर प्रभागीय वनाधिकारी का कहना था कि वो जंगल भूमि पर जबरन कब्ज़ा कर रहे थे। उनके पास वन अधिकार को लेकर कोई कागज़ नहीं था, वहीँ जिलाधिकारी सोनभद्र पंधारी यादव का कहना था कि वो झारखंड और बिहार के आदिवासी थे। उनके खिलाफ न्यायसंगत कार्यवाही की गयी है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय वन श्रमजीवी मंच के संयोजक अशोक चौधरी ने कहा की उत्तर प्रदेश में वनाधिकार कानून के क्रियान्वन को लेकर प्रदेश सरकार गंभीर नहीं है। इस पूरे मामले में हम राजनैतिक और कानूनी दोनों तरह की लड़ाई  लड़ेंगे। समाचार भेजे जाने तक पुरे जनपद में इस पूरे  मामले को लेकर आदिवासियों का आक्रोश चरम पर था, वन क्षेत्र में अवैध खनन को लेकर सुर्ख़ियों में आये ड़ीऍफ़ओ के साथ साथ जिलाधिकारी के स्थानान्तरण को लेकर तमाम संगठनों ने आवाज बुलंद की थी।