Sunday, June 20, 2010
Thursday, June 17, 2010
Wednesday, June 16, 2010
Dushyant Gautam
दुष्यंत गौतम
(राष्ट्रीय अध्यक्ष , अनुसूचित जाति मोर्चा , भाजपा)
पिता - स्व. श्री पदम् सिंह गौतम
जन्म स्थान - मलका गंज , दिल्ली
जन्म तिथि - 29 दिसम्बर 1957
शिक्षा - स्नातक , दिल्ली विश्व विद्यालय
व्यवसाय - व्यापार
पता - A - 787, घंड़ोली डेरी फार्म , मयूर विहार , फेस-III, दिल्ली
दूरभाष क्रमांक - 09999461777
जन प्रतिनिधि - निगम पार्षद (1997-2002)
राजनैतिक दायित्व -
संघ आयु / शिक्षा - बाल्य काल / द्वतीय वर्ष
विविध -
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण न देने पर विरोध :
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति को आरक्षण न देने के विरोध में दिनांक 21 अगस्त 2006 को जस्टिस रंगनाथ मिस्र को पैतीस हजार विरोध पत्र जंतर मंतर पर प्रदर्शन करके सौंपे !
दलित चेतना मंच :
वर्ष 2007 दलित चेतना मंच द्वारा आयोजित चिंतन बैठक में प्रमुख भूमिका निभाई जो पार्लियामेंट एनेक्सी हुई जिसमे सम्पूर्ण भारत से विभिन्न संगठनों के दलित चितकों नें भाग लिया ! पूरे दिन के सफल आयोजन में दलित उत्थान के प्रमुख विषयों पर निर्णायक चर्चा हुई !
चैतावनी रैली :
चेतना रैली :
14 अप्रैल 2009 लोक सभा चुनाव के दौरान चेतना रैली का भव्य आयोजन किया जिसमें चार रथ माननीय लाल कृष्ण आडवानी जी द्वारा केन्द्रीय कार्यालय से झंडी देकर रवाना किये , जो सम्पूर्ण भारत में सफलता पूर्वक चले और समाज में अभूतपूर्व प्रचार प्रसार का माध्यम बन लोकप्रिय हुए !
जस्टिस रंगनाथ मिस्र को विरोध स्वरुप हस्ताक्षर सौंपे :
वर्ष 2009 में धर्मान्तरित ईसाई एवं मुसलमानों को आरक्षण देने के विरोध में जस्टिस रंगनाथ मिस्र को विरोध स्वरुप पांच लाख हस्ताक्षर जंतर मंतर पर प्रदर्शन करके सौंपे
आरक्षण बचाओ मंच :
वर्ष 2010 बतौर राष्ट्रीय सह संयोजक , आरक्षण बचाओ मंच, देश भर में कार्यकर्ताओं को उर्जावान कर कई सफल कार्यक्रमों का आयोजन किया ! जंतर मंतर पर ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन कर राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को ज्ञापन देश भर से विरोध स्वरुप हस्ताक्षर करवाकर दिया !
(राष्ट्रीय अध्यक्ष , अनुसूचित जाति मोर्चा , भाजपा)
पिता - स्व. श्री पदम् सिंह गौतम
जन्म स्थान - मलका गंज , दिल्ली
जन्म तिथि - 29 दिसम्बर 1957
शिक्षा - स्नातक , दिल्ली विश्व विद्यालय
व्यवसाय - व्यापार
पता - A - 787, घंड़ोली डेरी फार्म , मयूर विहार , फेस-III, दिल्ली
दूरभाष क्रमांक - 09999461777
जन प्रतिनिधि - निगम पार्षद (1997-2002)
राजनैतिक दायित्व -
- मंडल अध्यक्ष , युवा मोर्चा, मंडल सोहन गंज ( 1982 )
- जिला अध्यक्ष , झुग्गी झोम्पड़ी प्रकोष्ठ (1995-1997)
- प्रदेश उपाध्यक्ष , अनुसूचित जाति मोर्चा (2000-2002)
- जिला उपाध्यक्ष , भाजपा , जिला मयूर विहार (2002-2003)
- राष्ट्रीय मंत्री , अनुसूचित जाति मोर्चा (2003-2004)
- राष्ट्रीय महामंत्री , अनुसूचित जाति मोर्चा (2004-2007) , अध्यक्ष श्री राम नाथ कोविंद जी
- राष्ट्रीय महामंत्री , अनुसूचित जाति मोर्चा (2007-2009) , अध्यक्ष डा० सत्यनारायण जटिया जी
- प्रदेश अध्यक्ष , अनुसूचित जाति मोर्चा,दिल्ली (2009-2010)
संघ आयु / शिक्षा - बाल्य काल / द्वतीय वर्ष
विविध -
- सदस्य , डी डी ए सलहाकार समिति (1997-2002)
- सदस्य , College of Business Study (1998-1999)
- अध्यक्ष , विधि समिति ,दिल्ली नगर निगम (1999-2000)
- अध्यक्ष , अनुसूचित जाति कल्याण , दिल्ली नगर निगम (2000-2002)
- सदस्य , केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (2003-2005)
- अध्यक्ष , रविदास जन्मोत्सव समिति ( रजिस्टर्ड ) (2006-2009)
- राष्ट्रीय सहसंयोजक , अनुसूचित जाति आरक्षण बचाओ मंच (2008-वर्तमान )
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण न देने पर विरोध :
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति को आरक्षण न देने के विरोध में दिनांक 21 अगस्त 2006 को जस्टिस रंगनाथ मिस्र को पैतीस हजार विरोध पत्र जंतर मंतर पर प्रदर्शन करके सौंपे !
दलित चेतना मंच :
वर्ष 2007 दलित चेतना मंच द्वारा आयोजित चिंतन बैठक में प्रमुख भूमिका निभाई जो पार्लियामेंट एनेक्सी हुई जिसमे सम्पूर्ण भारत से विभिन्न संगठनों के दलित चितकों नें भाग लिया ! पूरे दिन के सफल आयोजन में दलित उत्थान के प्रमुख विषयों पर निर्णायक चर्चा हुई !
चैतावनी रैली :
धर्मान्तरित ईसाई एवं मुसलमानों को आरक्षण देने के विरोध में राजागार्डन, दिल्ली में 21 सितम्बर 2008 को भव्य रैली का सफल आयोजन हुआ जिसमें सम्पूर्ण भारत से लगभग अस्सी हजार महिला एवं पुरुषों नें विभिन्न संघठनों से एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन किया !
चेतना रैली :
14 अप्रैल 2009 लोक सभा चुनाव के दौरान चेतना रैली का भव्य आयोजन किया जिसमें चार रथ माननीय लाल कृष्ण आडवानी जी द्वारा केन्द्रीय कार्यालय से झंडी देकर रवाना किये , जो सम्पूर्ण भारत में सफलता पूर्वक चले और समाज में अभूतपूर्व प्रचार प्रसार का माध्यम बन लोकप्रिय हुए !
जस्टिस रंगनाथ मिस्र को विरोध स्वरुप हस्ताक्षर सौंपे :
वर्ष 2009 में धर्मान्तरित ईसाई एवं मुसलमानों को आरक्षण देने के विरोध में जस्टिस रंगनाथ मिस्र को विरोध स्वरुप पांच लाख हस्ताक्षर जंतर मंतर पर प्रदर्शन करके सौंपे
आरक्षण बचाओ मंच :
वर्ष 2010 बतौर राष्ट्रीय सह संयोजक , आरक्षण बचाओ मंच, देश भर में कार्यकर्ताओं को उर्जावान कर कई सफल कार्यक्रमों का आयोजन किया ! जंतर मंतर पर ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन कर राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को ज्ञापन देश भर से विरोध स्वरुप हस्ताक्षर करवाकर दिया !
Tuesday, June 15, 2010
Press release on List of Central Election Committee, Disciplinary Committee and Morcha Presidents finalised by BJP National President Shri Nitin Gadkari
Press release on List of Central Election Committee, Disciplinary Committee and Morcha Presidents finalised by BJP National President Shri Nitin Gadkari | ||||
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Saturday, March 20, 2010
दलित उत्पीड़न को मिल रहा है दलित सत्ता का संरक्षण
दलित उत्पीड़न को मिल रहा है दलित सत्ता का संरक्षण
20 March, 2010 11:00;00 आवेश तिवारी
मगरदहा में आदिवासी दलितों की आत्मा के साथ साथ उनकी झोपड़ियों को रौंदे जाने के ४८ घंटों बाद जहाँ पूरा सोनभद्र सुलग रहा है वहीँ वनकर्मियों की बर्बरता के नए किस्से सामने आ रहे हैं। मगरदहा की ही लकिता अगरिया पत्नी जयश्री अगरिया गुरुवार शाम कोन के घने जंगलों में बेहोश पड़ी मिली। उसे इतना पीटा गया था कि उसका गर्भपात हो गया। उधर ओबरा वन प्रभाग द्वारा आदिवासियों के खिलाफ कुछ नए मुक़दमे दर्ज कराये जाने कि खबर मिली है। सर्वाधिक बैचैनी उन चंद आदिवसियों की गुमशुदगी से जुडी हैजो वनविभाग के हमले के बाद से ही गायब हैं। आदिवासी अपने परिजनों की तलाश में दर दर भटक रहे हैं वहीँ वन विभाग और जिला प्रशासन उन्हें अपराधी घोषित करने पर तुला हुआ है।
सोनभद्र में वन विभाग द्वारा आदिवासियों के शोषण उत्पीडन का ये कोई अकेला मामला नहीं है। टैक्स वसूलने और मुकदमे लड़ाने की मशीन बन चुका वन विभाग शोषण का नया औजार बन चुका है अभाव, उपेक्षा और सत्ता की अतिवादिता की बानगी बन चुके उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में। दलित उत्पीडन का अब तक का सबसे खौफनाक अध्याय लिखा जा रहा है। अभी दो वर्ष पूर्व ही अपनी जमीन पर हकदारी की मांग कर रही हरना कछार की दलित आदिवासी स्त्रियों की भी पुलिस और वन विभाग के लोगों ने पहले तो नंगा करके बेरहमी से पिटाई की। फिर उनके ऊपर फर्जी मुकदमा ठोंक दिया। शर्मनाक ये कि इस पूरे मामले की जानकारी उत्तर प्रदेश के गृह सचिव ,मुख्य सचिव के साथ साथ खुद मुख्यमंत्री को थी, भयावह ये कि उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जनपदों में इन सभी घटनाओं का इस्तेमाल माओवादी संगठन माइंड वाशिंग के लिए कर रहे हैं। एक तरफ जहाँ जंगल विभाग सुरक्षित वन क्षेत्रों में भारी वसूली करके अवैध खनन करा रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ आदिवासियों के खिलाफ प्रायोजित कार्यवाही की जा रही है। क्योंकि सोनभद्र का आदिवासी इस पूरे गोरखधंधे की आड़ में आ रहा है। कैमूर क्षेत्र महिला, मजदूर किसान संघर्ष समिति के सदस्य महिलाओं ने बताया 'साहब अब भी वो जब चाहते हैं हमें जेल में बंद कर देते हैं ,हमसे बार बार घर गाँव छोड़ कर भाग जाने को कहा जाता है। पुलिसवालों ने कोटेदारों को कह दिया है की इन्हें राशन मत दो। अगडी बिरादरी वालों से वे कहते हैं इन्हें दाना पानी मत दो।
अगर उत्तर प्रदेश में दलित सत्ता का सच देखना हो तो सोनभद्र आइये .यहाँ न सिर्फ आपको त्राहि त्राहि करता मानवाधिकार मिलेगा बल्कि हदें तोड़ रहा पुलिसिया दमन चक्र भी देखने को मिलेगा। मगरदहा में घटी घटना के लगभग एक डेढ़ साल पूर्व २४ सितम्बर २००८ को भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जब आदिवासी स्त्रियों को सरेआम नंगा करके पीटा गया था लेकिन हकीकत के सामने आने में पूरे एक साल लग गए। भुक्तभोगी महिलाओं ने बताया कि २४ सितम्बर को दिन दहाड़े लगभग ३०० लोगों की भीड़ ने जिनमे पुलिस, वन विभाग के लोगों के अलावा अगडी जातियों के वो लोग भी शामिल थे जिन्होंने मनमाने ढंग से आदिवसियों की भूमि पर कब्जा कर रखा था। गाँव पर हमला बोल दिया था। पुलिस वालों ने पहले गालियाँ बकते हुए हम सबको घर से बाहर निकला फिर हमारे पतियों को बन्दूक के जोर से धमकाते हुए पीछे धकेल दिया। महिलाओं का कहना था कि उन लोगों ने हमारे घरों में पहले आग लगा दी और उसके बाद एक के बाद एक करके हमें नंगा करके लाठियों और बेल्ट से पीटा। इस दौरान आदिवासियों के कपडे, साइकिल और बचे खुचे पैसे भी साथ आये लोगों के द्वारा लूट लिया गया। इनका कसूर सिर्फ इतना था कि वो वनाधिकार कानून के तहत अपनी उस जमीन पर कब्जे को लेना चाहते थे ,जिसे वन विभाग ने जबरन अपने कब्जे में ले रखा था, इस बर्बर कृत्य में एक ३ साल की लड़की को भी गहरी चोट आई। हरना कछार में पुलिस और वन विभाग के लोग दबाव बनाकर आदिवासियों से वो १५० एकड़ खाली कराना चाहते थे, जिसे आदिवासी अपनी पुश्तैनी जमीन कह रहे थे, घटना से पहले जमीन खाली करने आई टीम के एक जवान ने एक आदिवासी महिला की साडी खींचकर उसे नंगा कर दिया था इससे खार खायी महिलाओं ने विरोध स्वरुप अर्धनग्न होकर अपने कपडे पुलिस वालों के मुँह पर फेंक दिए। पुलिस द्वारा हरना कछार में जिन महिलाओं को उस घटना में नग्न करके पीटा गया था, उनमे महामति देवी, तैज्मानी देवी, जसो, बिस्वा, बच्चिया, फूलमती, इन्दरी, कल्पतिया, कलावती, फूलमती, भुक्ली, विद्यावती, आशा देवी इत्यादि शामिल थी ,आज भी ये सब महिलायें उस शर्मनाक घटना से उबार नहीं पायीं हैं। इनमे से कई ने आत्महत्या की भी कोशिशें की हैं। सोनभद्र में आदिवासी वनाधिकार कानून बनने के लगभग ४ वर्ष बाद भी एक इंच जमीन पर काबिज नहीं हो पाए हैं ,
जो जमीन सरकारी है ,वो जमीन हमारी है। सत्ता के सरपरस्ती में घर जंगल से उजाडे जाने के बाद सोनभद्र के आदिवासियों ने थक हार कर ये नारा अपना लिया है। पुलिस और वन विभाग के फर्जी मुकदमों से तंग आकर भारी संख्या में आदिवासी गिरिजन नक्सलवाद की भट्टी में खुद को झोंकने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। ये आश्चर्यजनक किन्तु सच है की आज भी वन विभाग हर माह सैकडों की संख्या में फर्जी मुक़दमे दर्ज कर रहा है। जानकारी मिली है की अकेले ओबरा वन प्रभाग ने पछले ६ माह में लगभग ६०० आदिवासियों के खिलाफ केस काटा है ,जिन आदिवासी गिरिजनों के पास खाने को दाना नहीं है वो मुकदमा लड़े तो लड़े कैसे? जनपद में हर जगह रोज- बरोज मानवाधिकारों की खुलेआम हत्या की जा रही है। भी हाल में ही अगोरी में एक साथ दो दर्जन हरिजनों ,विधवाओं और बुजुर्गों के खिलाफ फर्जी मुकदमा ठोंक दिया गया ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब वन दरोगा फर्जी मुक़दमे न दायर करता हो ,ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्यूंकि जनपद में सत्ता की साझेदारी में चला रहा भ्रष्टाचार का कार्यक्रम बंद न हो। भूमि हकदारी को लेकर किये जा रहे आन्दोलनों को कुचलने की राज्य सरकार हर संभव कोशिश कर रही हैं, नतीजा ये है कि हजारों एकड़ भूमि को लेकर वर्ग संघर्ष के हालात बने हुए हैं। आदिवासियों की इन दुश्वारियों को अपने पक्ष में भाजाने की माओवादी हर संभव कोशिश कर रहे हैं पुलिस का अत्याचार चरम सीमा पर है। दलितों की सरकार अपनी आँखों के सामने ,दलितों के आत्मसम्मान, दलितों की अस्मिता और उनकी आखिरी उम्मीद को तार तार होते देख रही है।
Thursday, March 18, 2010
उधर दौलत की बेटी के घर जश्न, इधर दलित की बेटी पर सितम
उधर दौलत की बेटी के घर जश्न, इधर दलित की बेटी पर सितम
18 March, 2010 15:09;00 आवेश तिवारी
दलित दलित का भेद
ऊपर दलित महिला पर प्रशासन का अत्याचार. नीचे मायावती नोटो की माला पहने हुए
जुल्म की इंतहा
प्रशासन ने ललिता को इतना पीटा कि उसका गर्भपात हो गया. दो दिन बाद जंगल से घायल अवस्था में मिली ललिता
नक्सलवाद की भट्टी में निरंतर तप रहे सोनभद्र के कोन थाना अंतर्गत मगरदह गाँव के इन दलित आदिवासियों का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने अपने बाप दादा की जमीन से वन विभाग द्वारा बार-बार खदेड़े जाने के बावजूद अपनी जमीन की हकदारी नहीं छोड़ी थी, और लगातार वन अधिकार अधिनियम के तहत उक्त जमीन पर न्यायिक हक़ देने की मांग कर रहे थे। समाचार भेजे जाने तक मगरदाहा में आदिवासियों पर वन विभाग के द्वारा किया गए हमले और बर्बर पिटाई के खिलाफ सोनभद्र के हजारों आदिवासियों ने जिलाधिकारी कार्यालय को घेर लिया था वहीँ वन विभाग ने घायलों के साथ साथ अन्य सैकड़ों लोगों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा पंजीकृत दर्ज कर उनमे से कुछ को जेल भेज दिया था, जज ने ललिता समेत अन्य घायलों की चिकित्सीय जांच के आदेश दिए हैं, उधर लखनऊ में कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव'गृह" को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है|
उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के परदे के पीछे का सच बयां करती ये घटना सिर्फ एक घटना नहीं है बल्कि प्रदेश में दलितों के खिलाफ सरकार प्रायोजित मानवाधिकार हनन का जीता जागता नमूना है। मगरदहा के आदिवासियों को पिछले साल अगस्त माह में पुलिस और वन विभाग ने संयुक्त कार्यवाही कर लगभग एक हजार आदिवासियों को उनके घरों से खदेड़ दिया था और उनके झोपड़ियों में आग लगाकर उसे तहस नहस कर डाला था उस दौरान वनकर्मी आदिवासियों के घरों का सारा सामान भी लूट ले गए थे। उस दौरान जिन्होंने विरोध किया उनके खिलाफ फर्जी मुक़दमे भी दर्ज कर दिए गए थे। ये सभी परिवार लगभग आठ माह तक इधर उधर भटक रहे थे। पिछले ३० नवम्बर को लगभग ४ हजार लोगों ने इसी मुद्दे पर कोन थाने का घेराव भी कर दिया था। इस बीच लगभग एक सप्ताह पूर्व ये आदिवासी जैसे तैसे छुपते छिपाते वापस अपने गाँव लौट आये और अपनी झोपड़ियाँ फिर से बनाने लगे।
मंगलवार की शाम ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी आर. के. चौरसिया ने आदिवासियों द्वारा फिर से झोपड़ियाँ बनाये जाने की खबर मिलते ही सैकड़ों की संख्या में वन सुरक्षा बल की टीम वहां भेज दी गयी। वनकर्मियों ने वहां पहुँचते ही निहत्थे आदिवासी दलितों की बर्बर पिटाई शुरू कर दी. पुरुषों को लाठियों से पीट पीट कर बेदम कर दिया गया वहीँ महिलाओं को बाल पकड़ कर घसीट कर जबरन निकला गया। मौके पर मौजूद गाँव के बंशी ने बिलखते हुए बताया की जब ये सब हो रहा था आदिवासियों के निरीह बच्चों की चीत्कार से पूरा जंगल गूँज रहा था पर वनकर्मियों को दया नहीं आई। सब कुछ तहस नहस करने के बाद वनकर्मी लालती और तीन पुरुषों को रात में ही उठा कर ले गए। बुरी तरह से घायल होने के बाद भी किसी का चिकित्सीय परिक्षण नहीं कराया गया।
इस पूरे मामले पर प्रभागीय वनाधिकारी का कहना था कि वो जंगल भूमि पर जबरन कब्ज़ा कर रहे थे। उनके पास वन अधिकार को लेकर कोई कागज़ नहीं था, वहीँ जिलाधिकारी सोनभद्र पंधारी यादव का कहना था कि वो झारखंड और बिहार के आदिवासी थे। उनके खिलाफ न्यायसंगत कार्यवाही की गयी है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय वन श्रमजीवी मंच के संयोजक अशोक चौधरी ने कहा की उत्तर प्रदेश में वनाधिकार कानून के क्रियान्वन को लेकर प्रदेश सरकार गंभीर नहीं है। इस पूरे मामले में हम राजनैतिक और कानूनी दोनों तरह की लड़ाई लड़ेंगे। समाचार भेजे जाने तक पुरे जनपद में इस पूरे मामले को लेकर आदिवासियों का आक्रोश चरम पर था, वन क्षेत्र में अवैध खनन को लेकर सुर्ख़ियों में आये ड़ीऍफ़ओ के साथ साथ जिलाधिकारी के स्थानान्तरण को लेकर तमाम संगठनों ने आवाज बुलंद की थी।
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